मगर तुम बड़ी मीठी सी नींद में सो रही थीं— दबी सी हँसी थी लबों के किनारे पे महकी हुई, गले पे इक उधड़ा हुआ तागा कुर्ती से निकला हुआ साँस छू छू के बस कपकपाये चला जा रहा था तर्बे साँसों की बजती हुयी हल्की हल्की हवा जैसे सँतूर के तार पर मीढ़ लेती हुयी बहुत देर तक मैं वह सुनता रहा बहुत देर तक अपने होठों को आँखों पे रख के— तुम्हारे किसी ख्वाब को प्यार करता रहा मैं, नहीं जागीं तुम-और मेरी जगाने की हिम्मत नहीं हो सकी।