Onkar Thakur

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इक निवाले सी निगल जाती है ये नींद मुझे रेशमी मोज़े निगल जाते हैं पाँव जैसे सुबह लगता है कि ताबूत से निकला हूँ अभी।
रात पश्मीने की
by Gulzar
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