Onkar Thakur

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चिड़ियाँ उड़ती हैं मेरे कांच के दरवाज़े के बाहर नाचती धूप की चिंगारियों में जान भरी है और मैं चिन्ता का तोदह हूं जो कमरे में पड़ा है
रात पश्मीने की
by Gulzar
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