Mohsin Shiraz

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हरी हरी है, मगर घास अब हरी भी नहीं जहां पे गोलियां बरसीं, ज़मीं भरी भी नहीं वो ‘माईग्रेटरी’ पंछी जो आया करते थे वो सारे ज़ख़्मी हवाओं से डर के लौट गए बड़ी उदास है वादी —— ये वादी-ए-कश्मीर!
रात पश्मीने की
by Gulzar
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