Nitin

1%
Flag icon
आज तेरी इक नज़्म पढ़ी थी, पढ़ते-पढ़ते लफ़्ज़ों के कुछ रंग लबों पर छूट गये आहंग ज़बाँ पे घुलती रही— इक लुत्फ़ का रेला, सोच में कितनी देर तलक लहराता रहा, देर तलक आँखें रस से लबरेज़ रहीं— सारा दिन पेशानी पर, अफ़शाँ के ज़र्रे झिलमिल-झिलमिल करते रहे!!
रात पश्मीने की
by Gulzar
Rate this book
Clear rating