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ख़ुदा नहीं, न सही, आदमी का ख़्वाब सही, कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए।
ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा, मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा।
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है, नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है। एक चिनगारी कहीं से ढूँढ़ लाओ दोस्तो, इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
मत कहो, आकाश में कुहरा घना है, यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।
हाथों में अंगारों को लिये सोच रहा था, कोई मुझे अंगारों की तासीर बताए।
हमने सोचा था जवाब आएगा, एक बेहूदा सवाल आया है।
कैसे आकाश में सूराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।
एक जंगल है तेरी आँखों में, मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ। तू किसी रेल-सी गुज़रती है, मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ।
अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार, घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार।
तुम्हारे पाँवों के नीचे कोई ज़मीन नहीं, कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं।