साये में धूप [Saaye Mein Dhoop]
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ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा, मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा।
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तुम्हीं कमज़ोर पड़ते जा रहे हो, तुम्हारे ख़्वाब तो शोले हुए हैं।
36%
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ग़ज़ब है सच को सच कहते नहीं वो, क़ुरानो-उपनिषद खोले हुए हैं।
37%
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अँधेरे में कुछ ज़िन्दगी होम कर दी, उजाले में अब ये हवन कर रहा हूँ।
45%
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तमाम रात तेरे मैकदे में मय पी है, तमाम उम्र नशे में निकल न जाए कहीं।
54%
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एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ, आज अपने बाजुओं को देख, पतवारें न देख।
54%
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वे सहारे भी नहीं अब, जंग लड़नी है तुझे, कट चुके जो हाथ, उन हाथों में तलवारें न देख।
55%
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पत्तों से चाहते हो बजें साज़ की तरह, पेड़ों से आप पहले उदासी तो लीजिए।
58%
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हमने भी पहली बार चखी तो बुरी लगी, कड़वी तुम्हें लगेगी मगर एक जाम और।
60%
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मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता, हम घर में भटके हैं, कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे।
68%
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जैसे किसी बच्चे को खिलौने न मिले हों, फिरता हूँ कई यादों को सीने से लगाए।
71%
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हमने सोचा था जवाब आएगा, एक बेहूदा सवाल आया है।