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Kindle Notes & Highlights
ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा, मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा।
तुम्हीं कमज़ोर पड़ते जा रहे हो, तुम्हारे ख़्वाब तो शोले हुए हैं।
ग़ज़ब है सच को सच कहते नहीं वो, क़ुरानो-उपनिषद खोले हुए हैं।
अँधेरे में कुछ ज़िन्दगी होम कर दी, उजाले में अब ये हवन कर रहा हूँ।
तमाम रात तेरे मैकदे में मय पी है, तमाम उम्र नशे में निकल न जाए कहीं।
एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ, आज अपने बाजुओं को देख, पतवारें न देख।
वे सहारे भी नहीं अब, जंग लड़नी है तुझे, कट चुके जो हाथ, उन हाथों में तलवारें न देख।
पत्तों से चाहते हो बजें साज़ की तरह, पेड़ों से आप पहले उदासी तो लीजिए।
हमने भी पहली बार चखी तो बुरी लगी, कड़वी तुम्हें लगेगी मगर एक जाम और।
मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता, हम घर में भटके हैं, कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे।
जैसे किसी बच्चे को खिलौने न मिले हों, फिरता हूँ कई यादों को सीने से लगाए।
हमने सोचा था जवाब आएगा, एक बेहूदा सवाल आया है।

![साये में धूप [Saaye Mein Dhoop]](https://i.gr-assets.com/images/S/compressed.photo.goodreads.com/books/1480786178l/33233523._SY475_.jpg)