कहीं पे धूप की चादर बिछाके बैठ गए, कहीं पे शाम सिरहाने लगाके बैठ गए। जले जो रेत में तलुवे तो हमने ये देखा, बहुत-से लोग वहीं छटपटाके बैठ गए। खड़े हुए थे अलावों की आँच लेने को, सब अपनी-अपनी हथेली जलाके बैठ गए। दुकानदार तो मेले में लुट गए यारो! तमाशबीन दुकानें लगाके बैठ गए। लहू-लुहान नज़रों का जिक्र आया तो, शरीफ़ लोग उठे दूर जाके बैठ गए। ये सोचकर कि दरख़्तों में छाँव होती है, यहाँ बबूल के साये में आके बैठ गए।