साये में धूप [Saaye Mein Dhoop]
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Read between August 27, 2017 - November 20, 2018
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इस शहर में वो कोई बारात हो या वारदात, अब किसी भी बात पर खुलती नहीं है खिड़कियाँ।
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मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता, हम घर में भटके हैं, कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे।
Avinash Kharche
Gh
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दुःख को बहुत सहेज के रखना पड़ा हमें, सुख तो किसी कपूर की टिकिया-सा उड़ गया।
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मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ, वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ। एक जंगल है तेरी आँखों में, मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ। तू किसी रेल-सी गुज़रती है, मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ। हर तरफ़ एतराज़ होता है, मैं अगर रोशनी में आता हूँ। एक बाजू उखड़ गया जब से, और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ। मैं तुझे भूलने की क़ोशिश में, आज कितने करीब पाता हूँ। कौन ये फ़ासला निभाएगा, मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ।