‘निश्चयाचा महामेरू। बहुत जनांस आधारू। अखंड स्थितीचा निर्धारू। श्रीमंत योगी।।१।। परोपकाराचिया राशी। उदंड घडती जयाशीं। जयाचे गुणमहत्त्वाशीं। तुळणा कैशी।।२।। नरपति हयपति। गजपति गडपति। पुरंधर आणि शक्ती। पृष्ठभागीं।।३।। यशवंत कीर्तिवंत। सामर्थ्यवंत वरदवंत। पुण्यवंत आणि जयवंत। जाणता राजा।।४।। आचारशील विचारशील। दानशील धर्मशील। सर्वज्ञपणें सुशील। सर्वां ठायीं।।५।। धीर उदार सुंदर। शूरक्रीयेसी तत्पर। सावधपणेंसी नृपवर। तुच्छ केले।।६।। तीर्थक्षेत्रें तीं मोडिलीं। ब्राह्मणस्थानें बिघडलीं। सकळ पृथ्वी आंदोळली। धर्म गेला।।७।। देवधर्म गोब्राह्मण। करावयासि रक्षण। हृदयस्थ झाला नारायण। प्रेरणा केली।।८।।