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पहली बार के बाद हम बस अपने आप को दोहराते हैं और हर बार दोहरने में बस वो पहली बार ढूँढ़ते हैं।
“थोड़ा-सा पागल हुए बिना इस दुनिया को झेला नहीं जा सकता।”
बातें जो हमें अच्छी लगती हैं वो हमें धीरे-धीरे सहलाकर शांत कर देती हैं।
बहुत थोड़ा-सा घबराना इसीलिए जरूरी होता है क्यूँकि अगर थोड़ी भी घबराहट नहीं है तो या तो वो काम जरूरी नहीं है या फिर वो काम करने लायक ही नहीं है।
जब सूरज समंदर की प्याली में नमक जैसा घुल गया तब बोली-
समंदर जितना बेचैन होता है हम उसके पास पहुँचकर उतना ही शांत हो जाते हैं। यही जिंदगी का हाल है पूरा बेचैन हुए बिना जैसे शांति मिल ही नहीं सकती।
जो लोग प्यार में होते हैं वो अपने साथ एक शहर, एक दुनिया लेकर चलते हैं। वो शहर जो मूवी हॉल की भीड़ के बीच में कॉर्नर सीट पर बसा हुआ होता है, वो शहर जो मेट्रो की सीट पर आस-पास की नजरों को इग्नोर करता हुआ होता है। वो शहर जिसको केवल वो पहचान पाते हैं जिन्होंने कभी अपना शहर ढूँढ़ लिया होता है या फिर जिनका शहर खो चुका होता है। हम सभी ने अपने न जाने कितने शहर खो दिए हैं, इतने शहर जिनको जोड़कर एक नयी दुनिया बन सकती थी।
“ब्ला ब्ला ब्ला… कर लेते हैं।” जिंदगी की औकात बस ब्ला ब्ला ब्ला भर की है, हम ब्ला ब्ला ब्ला करने आते हैं और ब्ला ब्ला ब्ला करके चले जाते हैं।
जिंदगी की सबसे अच्छी और खराब बात यही है कि ये हमेशा नहीं रहने वाली। ये बात एक उम्र के बाद हम सभी को समझ में आने लगती है कि दिन अच्छे हों या खराब, दोनों बीत जाते हैं। रोते हुए हम अपने सबसे करीब होते हैं और हँसते हुए दूसरों के। इसलिए लाख अपने करीब होकर भी रोना हँसने से रेस में पीछे रह जाता है।
“लाइफ की कोई मीनिंग नहीं होती। उसमें मीनिंग डालना पड़ता है। कभी अपने पागलपन से तो कभी अपने सपनों से। Actually सपने आते ही केवल पागलों को हैं। लाइफ में हर कोई बेचैन भी तो नहीं होता न! बिना बीमारी के जब बेचैनी रहने लगे तो समझ जाना कि लाइफ तुमसे मिलना चाहती है।”
हम सभी की जिंदगी में एक दिन ऐसा आता ही है जब हम रोज सही पते पर पहुँचकर भी भटके हुए होते ह
पहली बार जब दो लोग सबसे करीब आए होंगे तो वो जरूर समंदर का किनारा रहा होगा, सूरज डूब रहा होगा। उन दोनों लोगों ने दिन को डूबने से पहले रोकने की पहली कोशिश की होगी। दिन को रोकने की कोशिश में वो मिलकर पहली बार एक हुए होंगे। ऐसा एक हुए होंगे कि सूरज ने डूबने के बाद 15-20 मिनट उजाला रखा होगा ताकि वो धुँधले उजाले में घुलकर शाम हो जाएँ। दुनिया तब से ऐसे ही रोज शाम को उन दो लोगों को खोजती है जो दिन को रोकना चाहते हैं। बस अब हमने उस दुनिया से इतर छोटी-सी बहुत सारी दुनिया बना ली है। इस नयी दुनिया से हमें फुर्सत नहीं है और उस दुनिया में कदम रखने की पहली शर्त है, फुर्सत।
आती हुई हर बात अच्छी लगती है, बातें, बारिश, धूप, समंदर सबकुछ।
माँ होना असल में कुछ-न-कुछ ढूँढ़ते रहना है बस।
मार्केट में कुछ खरीदते हुए हमारा हर बार किसी सामान की गारंटी पूछना कितना फिजूल होता है ये जानते हुए कि जिंदगी की कोई गारंटी है नहीं और हम रोज हर सामान गारंटी वाला खरीदना चाहते हैं।
हम सबकी जिंदगी में ये दिन आता ही है जब हम सुबह ऑफिस के लिए निकलते हैं तो हमें मालूम होता है कि ये हमारी मंजिल नहीं है, हम रोज सही पते पर पहुँचकर भी भटके हुए होते हैं।
थोड़ा अजीब है लेकिन हमारी जिंदगी के कई असली केवल इसीलिए असली हैं क्यूँकि वो अभी तक नकली साबित नहीं हुए हैं।
आवाजें झींगुर हो गई
गलतियाँ वो पगडंडियाँ होती हैं जो बताती रहती हैं कि हमने शुरू कहाँ से किया था।
“बचपन में हमने माचिस की डिबिया में घर की खिड़की के कोने से आनी वाली धूप को छुपाकर रखा होता है। तुमने भी रखा होगा!”
धीरे-धीरे होने वाली कोई भी चीज पता ही नहीं चलती।
इसलिए जब पैसे इकट्ठा हो जाते हैं तब तक वो अपना मतलब खो चुके होते हैं।
हर आदमी अपने अंदर इतना कुछ दबाए रहता है कि किसी दिन वो सबकुछ ईमानदारी से बता दे तो सुनने वाला पागल हो जाए। किसी के साथ बहुत लंबा रह लो तो भी वो इंसान अजनबी हो जाता है। ये बात पम्मी को इसी पल समझ भी आई और महसूस भी हुई।
प्यार के हजारों सालों के इतिहास में move on कर जाना सबसे वाहियात खोज है। जो move on नहीं कर पाते वो प्यार की असली यात्रा पर निकलते हैं। जिनके आँसू न बहते हैं, न सूखते हैं, वो जिंदगी को करीब से समझ पाते हैं। जिनको गहरी नींद नहीं आती वो समझ पाते हैं कि दुनिया में सुबह से अच्छा कुछ होता ही नहीं। किसी भी चीज को हम सही से समझ ही तब सकते हैं जब हम उसको पाकर खो दें। पाकर पाए रहने वाले अक्सर चूक जाया करते हैं।
हमारी यादों का कुछ हिस्सा इतना काला होता है कि उस पन्ने को खोलते ही रात हो जाती है।