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इसीलिए जिंदगी को सही से समझने के लिए किताबें ही नहीं बातें भी पढ़नी पड़ती हैं। बातें
वो सबकुछ समझना पड़ता है जो बोल के बोला गया और चुप रहकर बोला गया हो।
पता नहीं दो लोग एक-दूसरे को छूकर कितना पास आ पाते हैं। हाँ, लेकिन इतना तय है कि बोलकर अक्सर लोग छूने से भी ज्यादा पास आ जाते हैं। इतना पास जहाँ छूकर पहुँचा ही नहीं