Utkarsh Garg

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कमरे के उजाले ने सुधा और चंदर की परछाइयों को मिलाकर एक कर दिया। चंदर और सुधा दोनों ने एक-दूसरे के समंदर को अपने होंठों से छुआ। ऐसे छुआ जिससे एक-दूसरे का कोई भी कोना सूखा न रहे। सुधा ने चंदर की महक से साँस ली। चंदर ने कमरे के अंधेरे को अपनी आँखों में भर लिया। कपड़ों ने अपने-आप को खुद ही आजाद कर लिया और कमरे के कोने में जाकर पसर गए। गद्दे पर जैसे चंदर और सुधा एक-दूसरे में घुले जा रहे थे, गद्दे के पास रखे दोनों के कपड़े एक-दूसरे में उलझे जा रहे थे। कपड़ों में थोड़ी-सी रेत, थोड़ी-सी शाम, थोड़ा उजाला और थोड़ा-सा समंदर था। चंदर और सुधा वो महसूस कर रहे थे जो दुनिया के पहले आदमी ने दुनिया की पहली औरत के साथ ...more
मुसाफिर Cafe
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