Utkarsh Garg

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“पता है हमें किसके साथ जिंदगी गुजारनी चाहिए?” “किसके साथ?” “बचपन में हमने माचिस की डिबिया में घर की खिड़की के कोने से आनी वाली धूप को छुपाकर रखा होता है। तुमने भी रखा होगा!” “हाँ, रखा था तो उससे जिंदगी गुजारने का क्या रिश्ता है?” “बस जिस दिन तुम्हें अपने अलावा कोई दूसरा ऐसा मिल जाए जो तुम्हारी माचिस की डिबिया बिना खोले ही मान ले कि धूप अभी भी वहाँ डिबिया में होगी तब सोचना नहीं, उसके साथ जिंदगी गुजार लेना।” “और ऐसा कोई मिला ही नहीं तो?” “तो क्या?” “कोई ऐसा मिला ही नहीं तो?” “तो अपनी माचिस की डिबिया खोलकर थोड़ी-सी धूप चख लेना।”
मुसाफिर Cafe
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