Utkarsh Garg

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पता नहीं दो लोग एक-दूसरे को छूकर कितना पास आ पाते हैं। हाँ, लेकिन इतना तय है कि बोलकर अक्सर लोग छूने से भी ज्यादा पास आ जाते हैं। इतना पास जहाँ छूकर पहुँचा ही नहीं जा सकता हो। किसी को छूकर जहाँ तक पहुँचा जा सकता है वहाँ पहुँचकर अक्सर पता चलता है कि हमने तो साथ चलना भी शुरू नहीं किया।
मुसाफिर Cafe
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