Utkarsh Garg

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चंदर के कमरे में पहुँचते ही बिस्तर ने उठकर उसको गले लगा लिया। नींद उसका सिर सहलाने लगी। कंबल ने उसको ओढ़ लिया। कमरे के बाहर दिन शाम के साथ घुलकर रात को बुला रहा था। तारें टूट-टूटकर रात का अधूरापन भरने लगे। आवाजें झींगुर हो गईं। सबकुछ ठहर रहा था।
मुसाफिर Cafe
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