चंदर ने निशान को महसूस किया और उसको अपनी सहलाहट से भरने की कोशिश करने लगा। कमरे के उजाले ने सुधा और चंदर की परछाइयों को मिलाकर एक कर दिया। चंदर और सुधा दोनों ने एक-दूसरे के समंदर को अपने होंठों से छुआ। ऐसे छुआ जिससे एक-दूसरे का कोई भी कोना सूखा न रहे। सुधा ने चंदर की महक से साँस ली। चंदर ने कमरे के अंधेरे को अपनी आँखों में भर लिया। कपड़ों ने अपने-आप को खुद ही आजाद कर लिया और कमरे के कोने में जाकर पसर गए। गद्दे पर जैसे चंदर और सुधा एक-दूसरे में घुले जा रहे थे, गद्दे के पास रखे दोनों के कपड़े एक-दूसरे में उलझे जा रहे थे। कपड़ों में थोड़ी-सी रेत, थोड़ी-सी शाम, थोड़ा उजाला और थोड़ा-सा समंदर था। चंदर और
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