“मुझे कैफे खोलने का मन है। एक ऐसा कैफे जिसमें खूब सारी किताबें हों। लोग आएँ, बैठें, बातें करें, किताब पढ़ें, अपने घूमने का प्लान बनाएँ, अपनी भागती हुई जिंदगी के बारे में ठहरकर सोचें। अपनी कहानियाँ सुनाएँ। अपने डर सुनाएँ, अपनी गलतियाँ बताएँ, अपनी यादें दोहराएँ। इत्मीनान से बैठकर अपनी यादों को दोहराने से बड़ा कोई सुख नहीं है। कभी-कभी सोचता हूँ एक बेटी हो मेरी जिससे मैं खूब सारी बातें करूँ। मैं बच्चों को कहानियाँ सुनाऊँ