Prem Lohana

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“झूठ क्यूँ बोलते हो तुम?” “क्यूँकि झूठ में उम्मीद होती है।” “झूठ आखिर में उम्मीद तोड़ता भी तो है।” “झूठ से ‘आखिर’ तक बात चलती तो है। वर्ना सारे रिश्ते एक शाम में खत्म हो जाएँ।”
मुसाफिर Cafe
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