असल में किताबें दोस्त तब बनती हैं जब हम सालों बाद उन्हें पहली बार की तरह छूते हैं। किताबें खोलकर अपनी पुरानी अंडरलाइन्स को ढूँढ़-ढूँढ़कर छूने की कोशिश करते हैं। किसी को समझना हो तो उसकी शेल्फ में लगी किताबों को देख लेना चाहिए, किसी कि आत्मा समझनी हो तो उन किताबों में लगी अंडरलाइन को पढ़ना चाहिए।