मुसाफिर Cafe
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Read between November 3 - November 3, 2021
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बातें दुनिया की तमाम खूबसूरत जरूरी चीजों जैसी हैं जो कम-से-कम दो लोगों के बीच हो सकती हैं। बातें हमारे शरीर का वो जरूरी हिस्सा होती हैं जिसको कोई दूसरा ही पूरा कर सकता है। अकेले बड़बड़ाया जा सकता है, पागल हुआ जा सकता है, बातें नहीं की जा सकती।
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किताब की अंडरलाइन अक्सर वो फुल स्टॉप होता है जो लिखने वाले ने पढ़ने वाले के लिए छोड़ दिया होता है। अंडरलाइन करते ही किताब पूरी हो जाती है।
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कहानियाँ कोई भी झूठ नहीं होतीं। या तो वो हो चुकी होती हैं या वो हो रही होती हैं या फिर वो होने वाली होती हैं।
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पहली बार के बाद हम बस अपने आप को दोहराते हैं और हर बार दोहरने में बस वो पहली बार ढूँढ़ते हैं।
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“थोड़ा-सा पागल हुए बिना इस दुनिया को झेला नहीं जा सकता।”
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जिंदगी की कोई भी शुरुआत हिचकिचाहट से ही होती है। बहुत थोड़ा-सा घबराना इसीलिए जरूरी होता है क्यूँकि अगर थोड़ी भी घबराहट नहीं है तो या तो वो काम जरूरी नहीं है या फिर वो काम करने लायक ही नहीं है।
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केवल ट्रेन से जाने वाले ही स्टेशन पर बिछड़ नहीं रहे होते हैं बल्कि कई बार प्लेटफार्म की एक ही साइड पर लोग भी हमेशा के लिए बिछड़ रहे होते
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पुरानी जगहों पर इसलिए भी जाते रहना चाहिए क्यूँकि वहाँ पर हमारा पास्ट हमारे प्रेजेंट से आकर मिलता है। लाइफ को रिवाइंड करके जीते चले जाना भी आगे बढ़ने का ही एक तरीका है।
61%
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दुनिया में तमाम चीजों जैसे भगवान भी एक तरह का एडजस्टमेंट हैं जो लोग अपने कम्फर्ट के हिसाब से कर लेते हैं।
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शहरों की नापतौल वहाँ रहने वाले लोगों की नींद से करनी चाहिए। शहर छोटा या बड़ा वहाँ रहने वालों की नींद से होता है। ठिकाना तो कोई भी शहर दे देता है, गहरी नींद कम शहर दे पाते हैं।
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दुकान पर करीब वो दो घंटे बिताने के बाद उसने कुल 8-10 किताबें खरीदीं। जिसमें रस्किन बॉन्ड की दो किताबें, मनोहर श्याम जोशी की ‘ट टा प्रोफेसर’, अज्ञेय की ‘शेखर एक जीवनी’, विनोद कुमार शुक्ल की ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’, भगवती चरण वर्मा की ‘चित्रलेखा’, धर्मवीर भारती की ‘गुनाहों का देवता’ और सुरेन्द्र वर्मा की ‘मुझे चाँद चाहिए’ थी।
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असल में किताबें दोस्त तब बनती हैं जब हम सालों बाद उन्हें पहली बार की तरह छूते हैं। किताबें खोलकर अपनी पुरानी अंडरलाइन्स को ढूँढ़-ढूँढ़कर छूने की कोशिश करते हैं। किसी को समझना हो तो उसकी शेल्फ में लगी किताबों को देख लेना चाहिए, किसी कि आत्मा समझनी हो तो उन किताबों में लगी अंडरलाइन को पढ़ना चाहिए।
67%
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किताबें मजा देती हैं और अच्छी किताबें मजे-मजे में पता नहीं कब बेचैनी दे देती हैं।
70%
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गुस्सा जब बढ़ जाता है तो दुनिया को झेलना बड़ा मुश्किल हो जाता है। गुस्सा जब हद से ज्यादा बढ़ जाता है तो अपने-आप को झेलना मुश्किल हो जाता
74%
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जिनके पास खोने के लिए कुछ नहीं होता वो फैसले जल्दी ले लिया करते हैं।
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दुनिया में देने लायक अगर कुछ है तो वो है ‘एक दिन सब ठीक हो जाएगा’ की उम्मीद। ये दुनिया शायद आज तक चल ही शायद इसलिए रही है क्यूँकि लोग अभी भी जाने-अनजाने एक दिन सब ठीक हो जाएगा की उम्मीद दे देते हैं।