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Kindle Notes & Highlights
“लोग कॉलेज में, ट्रेन में, फ्लाइट में, बस में, लिफ्ट में, होटल में, कैफे में तमाम जगहों पर कहीं भी मिल सकते हैं लेकिन किताब में कोई कैसे मिल सकता है?”
पहली हर चीज की बात हमेशा कुछ अलग होती है क्यूँकि पहला न हो तो दूसरा नहीं होता, दूसरा न हो तो तीसरा, इसीलिए पहला कदम ही जिंदगी भर रास्ते में मिलने वाली मंजिलें तय कर दिया करता है। पहली बार के बाद हम बस अपने आप को दोहराते हैं और हर बार दोहरने में बस वो पहली बार ढूँढ़ते हैं।
रोते हुए हम अपने सबसे करीब होते हैं और हँसते हुए दूसरों के।
“मुझे कैफे खोलने का मन है। एक ऐसा कैफे जिसमें खूब सारी किताबें हों। लोग आएँ, बैठें, बातें करें, किताब पढ़ें, अपने घूमने का प्लान बनाएँ, अपनी भागती हुई जिंदगी के बारे में ठहरकर सोचें। अपनी कहानियाँ सुनाएँ। अपने डर सुनाएँ, अपनी गलतियाँ बताएँ, अपनी यादें दोहराएँ।
खेले-खाए हुए लड़के पसंद होते हैं लड़कियों को।”
“यही कि सेक्स के जस्ट बाद जब लड़की लड़के की आँख में जो कुछ ढूँढ़ती है न वही होता है प्यार और उस ढूँढ़ने में जब पहली बार पलक झपकती है वो होती है पहली बातचीत। खैर छोड़ो, समझ जाओगे पहला हनीमून है न तुम्हारा, धीरे-धीरे सीख जाओगे।”
किसी कि आत्मा समझनी हो तो उन किताबों में लगी अंडरलाइन को पढ़ना चाहिए।
‘यदि प्रत्येक व्यक्ति अपनी जीवनी लिखने लगे तो संसार में सुंदर पुस्तकों की कमी न रहे’।
हमें केवल यादें याद नहीं आतीं बल्कि सबसे ज्यादा वो यादें याद आती हैं जो हम बना सकते थे।
“क्यूँकि शादी के बाद बिस्तर पर लेटने पर ऊपर पंखें की धूल दिखाई देती है, पंखें की हवा नहीं दिखाई देती।”
“प्यार भी हवा जैसा होता है। बस शुरू में धूल नहीं दिखती।”
जिनके पास खोने के लिए कुछ नहीं होता वो फैसले जल्दी ले लिया करते हैं।
लाइफ को लेकर प्लान बड़े नहीं, सिम्पल होने चाहिए। प्लान बहुत बड़े हो जाएँ तो लाइफ के लिए ही जगह नहीं बचती।
गलतियाँ सुधारनी जरूर चाहिए लेकिन मिटानी नहीं चाहिए। गलतियाँ वो पगडंडियाँ होती हैं जो बताती रहती हैं कि हमने शुरू कहाँ से किया था।
एक वक्त के बाद हम बड़े-से-बड़ा दुःख तो बर्दाश्त कर लेते हैं, पर छोटी-से-छोटी खुशी झेली नहीं जाती।
रास्ते केवल वो भटकते हैं जिनको रास्ता पता हो, जिनको रास्ता पता ही नहीं होता उनके भटकने को भटकना नहीं बोला जाता है।
हमारे सब जवाब हमारे पास खुद हैं, ये बात समझने के लिए अपने हिस्से भर की दुनिया भटकनी पड़ती ही है। बिना भटके मिली हुई मंजिलें और जवाब दोनों ही नकली होते हैं। वैसे भी जिंदगी की मंजिल भटकना है कहीं पहुँचना नहीं।