Saurabh Singh

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इंसानी कान एक ऐसे दरबान की तरह होता है जो हैसियत, औक़ात और मौक़े के हिसाब से सिर्फ़ चुनिंदा लोगों को अंदर आने की इज़ाज़त देता है और हर एक ग़ैर-ज़रूरी, ग़ैर-मामूली को दरवाज़ा भेड़ कर रुख़सत फ़रमाता है।
Namak Swadanusar (Hindi)
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