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स्त्री की प्रेमसुधा इतनी तीव्र होती है कि वह पति का स्नेह पाकर अपना जीवन सफल समझती है और इस प्रेम के आधार पर जीवन के सारे कष्टों को हँस-हँसकर सह लेती है।
प्रियतम! अब मुझे मालूम हो गया कि मेरी जिंदगी निरुद्देश्य है। जिस फूल को देखनेवाला, चुननेवाला कोई नहीं. वह खिलें तो क्यों? क्या इसीलिए कि मुरझाकर जमीन पर गिर पड़े और पैरों से कुचल दिया जाए?