Vikrant

6%
Flag icon
झुनिया ने कलसा न दिया। कुएँ के जगत पर जाकर मुस्कराती हुई बोली -- तुम हमारे मेहमान हो। कहोगे एक लोटा पानी भी किसी ने न दिया। 'मेहमान काहे से हो गया। तुम्हारा पड़ोसी ही तो हूँ।’ पड़ोसी साल-भर में एक बार भी सूरत न दिखाये, तो मेहमान ही है।’ रोज़-रोज़ आने से मरजाद भी तो नहीं रहती।’ झुनिया हँसकर तिरछी नज़रों से देखती हुई बोली -- वही मरजाद तो दे रही हूँ। महीने में एक बेर आओगे, ठंडा पानी दूँगी। पंद्रहवें दिन आओगे, चिलम पाओगे। सातवें दिन आओगे, ख़ाली बैठने को माची दूँगी। रोज़-रोज़ आओगे, कुछ न पाओगे। 'दरसन तो दोगी?' 'दरसन के लिए पूजा करनी पड़ेगी।' यह कहते-कहते जैसे उसे कोई भूली हुई बात याद आ गयी। उसका मुँह उदास ...more
This highlight has been truncated due to consecutive passage length restrictions.
Vikrant
Flirting in old days
गोदान [Godan]
Rate this book
Clear rating