झुनिया ने कलसा न दिया। कुएँ के जगत पर जाकर मुस्कराती हुई बोली -- तुम हमारे मेहमान हो। कहोगे एक लोटा पानी भी किसी ने न दिया। 'मेहमान काहे से हो गया। तुम्हारा पड़ोसी ही तो हूँ।’ पड़ोसी साल-भर में एक बार भी सूरत न दिखाये, तो मेहमान ही है।’ रोज़-रोज़ आने से मरजाद भी तो नहीं रहती।’ झुनिया हँसकर तिरछी नज़रों से देखती हुई बोली -- वही मरजाद तो दे रही हूँ। महीने में एक बेर आओगे, ठंडा पानी दूँगी। पंद्रहवें दिन आओगे, चिलम पाओगे। सातवें दिन आओगे, ख़ाली बैठने को माची दूँगी। रोज़-रोज़ आओगे, कुछ न पाओगे। 'दरसन तो दोगी?' 'दरसन के लिए पूजा करनी पड़ेगी।' यह कहते-कहते जैसे उसे कोई भूली हुई बात याद आ गयी। उसका मुँह उदास
झुनिया ने कलसा न दिया। कुएँ के जगत पर जाकर मुस्कराती हुई बोली -- तुम हमारे मेहमान हो। कहोगे एक लोटा पानी भी किसी ने न दिया। 'मेहमान काहे से हो गया। तुम्हारा पड़ोसी ही तो हूँ।’ पड़ोसी साल-भर में एक बार भी सूरत न दिखाये, तो मेहमान ही है।’ रोज़-रोज़ आने से मरजाद भी तो नहीं रहती।’ झुनिया हँसकर तिरछी नज़रों से देखती हुई बोली -- वही मरजाद तो दे रही हूँ। महीने में एक बेर आओगे, ठंडा पानी दूँगी। पंद्रहवें दिन आओगे, चिलम पाओगे। सातवें दिन आओगे, ख़ाली बैठने को माची दूँगी। रोज़-रोज़ आओगे, कुछ न पाओगे। 'दरसन तो दोगी?' 'दरसन के लिए पूजा करनी पड़ेगी।' यह कहते-कहते जैसे उसे कोई भूली हुई बात याद आ गयी। उसका मुँह उदास हो गया। वह विधवा है। उसके नारीत्व के द्वार पर पहले उसका पति रक्षक बना बैठा रहता था। वह निश्चिंत थी। अब उस द्वार पर कोई रक्षक न था, इसलिए वह उस द्वार को सदैव बंद रखती है। कभी-कभी घर के सूनेपन से उकताकर वह द्वार खोलती है; पर किसी को आते देखकर भयभीत होकर दोनों पट भेड़ लेती है। गोबर ने कलसा भरकर निकाला। सबों ने रस पिया और एक चिलम तमाखू और पीकर लौटे। भोला ने कहा -- कल तुम आकर गाय ले जाना गोबर, इस बखत तो सानी खा रही है। गोबर की आँखें उसी गाय पर लगी हुई थी और मन-ही-मन वह मुग्ध हुआ जाता था। गाय इतनी सुन्दर और सुडौल है, इसकी उसने कल्पना भी न की थी। होरी ने लोभ को रोककर कहा -- मँगवा लूँगा, जल्दी क्या है? 'तुम्हें जल्दी न हो, हमें तो जल्दी है। उसे द्वार पर देखकर तुम्हें वह बात याद रहेगी।’ 'उसकी मुझे बड़ी फ़िकर है दादा।' 'तो कल गोबर को भेज देना।' दोनों ने अपने-अपने खाँचे सिर पर रखे और आगे बड़े। दोनों इतने प्रसन्न थे मानो ब्याह करके लौटे हों। होरी को तो अपनी चिर संचित अभिलाषा के पूरे होने का हर्ष ...
...more
This highlight has been truncated due to consecutive passage length restrictions.