वैद्य एक बार रोगी को चंगा कर दे, फिर रोगी उसके हाथों विष भी ख़ुशी से पी लेगा–अब जैसे आज ही बहू घर से रूठकर चली गयी, तो किसकी हेठी हुई! बहू को कौन जानता है? किसकी लड़की है, किसकी नातिन है, कौन जानता है! संभव है, उसका बाप घसियारा ही रहा हो…। बुढ़िया ने निश्चयात्मक भाव से कहा–घसियारा तो है ही बेटा, पक्का घसियारा। सबेरे उसका मुँह देख लो, तो दिन-भर पानी न मिले। गोबर बोला–तो ऐसे आदमी की क्या हँसी हो सकती है! हँसी हुई तुम्हारी और तुम्हारे आदमी की। जिसने पूछा, यही पूछा कि किसकी बहू है? फिर वह अभी लड़की है, अबोध, अल्हड़। नीच माता-पिता की लड़की है, अच्छी कहाँ से बन जाय! तुमको तो बूढ़े तोते को राम-नाम पढ़ाना
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