डूब जाना चाहती थीं। किसी काम में उसका मन न लगता। खोंचा लेकर जाता, तो घंटे-भर ही में लौट आता। मनोरंजन का कोई दूसरा सामान न था। पड़ोस के मजूर और इक्केवान रात-रात भर ताश और जुआ खेलते थे। पहले वह भी ख़ूब खेलता था; मगर अब उसके लिए केवल मनोरंजन था, झुनिया के साथ हासविलास। थोड़े ही दिनों में झुनिया इस जीवन से ऊब गयी। वह चाहती थी, कहीं एकांत में जाकर बैठे, ख़ूब निश्चिंत होकर लेटे-सोये; मगर वह एकांत कहीं न मिलता। उसे अब गोबर पर ग़ुस्सा आता। उसने शहर के जीवन का कितना मोहक चित्र खींचा था, और यहाँ इस काल-कोठरी के सिवा और कुछ नहीं। बालक से भी उसे चिढ़ होती थी। कभी-कभी वह उसे मारकर बाहर निकाल देती और अंदर
...more