‘उस कोठी का सुभीते से निकलना ज़रा मुश्किल है। आप जानते हैं, वह जगह बस्ती से कितनी दूर है; मगर ख़ैर, देखूँगा। आप उसकी क़ीमत का क्या अंदाज़ा करते हैं? राय साहब ने एक लाख पचीस हज़ार बताए। पंद्रह बीघे ज़मीन भी तो है उसके साथ। खन्ना स्तंभित हो गये! बोले–आप आज के पंद्रह साल पहले का स्वप्न देख रहे हैं राय साहब! आपको मालूम होना चाहिए कि इधर जायदादों के मूल्य में पचास परसेंट की कमी हो गई है। रायसाहब ने बुरा मानकर कहा–जी नहीं, पन्द्रह साल पहले उसकी क़ीमत डेढ़ लाख थी। ‘मैं ख़रीददार की तलाश में रहूँगा; मगर मेरा कमीशन पाँच प्रतिशत होगा आपसे।’ ‘औरों से शायद दस प्रतिशत हो क्यों; क्या करोगे इतने रुपये लेकर?’