मेहता ने उन्हें छाती से लगा कर दुखित स्वर में कहा -- खन्नाजी, ज़रा धीरज से काम लीजिए। आप समझदार होकर दिल इतना छोटा करते हैं। दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका सम्मान नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है। आप निर्धन रहकर भी स्त्रियों के विश्वास-पात्र रह सकते हैं और शत्रुओं के भी; बल्कि तब कोई आपका शत्रु रहेगा ही नहीं। आइए, घर चलें। ज़रा आराम कर लेने से आपका चित्त शांत हो जायगा।

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