‘ले जाने को मैं नहीं रोकती, लेकिन परदेस में बाल-बच्चों के साथ रहना, न कोई आगे न पीछे; सोचो कितना झंझट है।’ ‘परदेस में संगी-साथी निकल ही आते हैं अम्माँ और यह तो स्वारथ का संसार है। जिसके साथ चार पैसे ग़म खाओ वही अपना। ख़ाली हाथ तो माँ-बाप भी नहीं पूछते।’
Khaali haath to maa baap bhi nahi poochte