Vikrant

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‘मगर मिस मालती आपको छोड़नेवाली नहीं। कहिए लिख दूँ।’ ‘ऐसी औरतों से मैं केवल मनोरंजन कर सकता हूँ, ब्याह नहीं। ब्याह तो आत्म- समर्पण है।’ ‘अगर ब्याह आत्म-समर्पण है, तो प्रेम क्या है?’ ‘प्रेम जब आत्म-समर्पण का रूप लेता है, तभी ब्याह है; उसके पहले ऐयाशी है।’ मेहता ने कपड़े पहने और विदा हो गये। शाम हो गयी थी। मिरज़ा ने जाकर देखा, तो गोबर अभी तक पेड़ों को सींच रहा था। मिरज़ा ने प्रसन्न होकर कहा-जाओ, अब तुम्हारी? छुट्टी है। कल फिर आओगे? गोबर ने कातर भाव से कहा-मैं कहीं नौकरी चाहता हूँ मालिक! ‘नौकरी करना है, तो हम तुझे रख लेंगे।’
Vikrant
Love is aiyyashi without self sacrifice
गोदान [Godan]
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