'हाँ दादा, भला वह बात भूल सकता हूँ। तुमने इतना न किया होता, तो तुमसे लड़ने के लिए कैसे बचा रहता। ' होरी को ऐसा मालूम हुआ कि हीरा का स्वर भारी हो गया है। उसका गला भी भर आया। 'बेटा, लड़ाई-झगड़ा तो जिंदगी का धरम है। इससे जो अपने हैं, वह पराये थोड़े ही हो जाते हैं। जब घर में चार आदमी रहते हैं, तभी तो लड़ाई-झगड़े भी होते हैं। जिसके कोई है ही नहीं, उसके कौन लड़ाई करेगा।' दोनों ने साथ चिलम पी। तब हीरा अपने घर गया, होरी अंदर भोजन करने चला।