मैं रुपवती हूँ। तुम भी मेरे अनेक चाहनेवालों में से एक हो। वह मेरी कृपा थी कि जहाँ मैं औरों के उपहार लौटा देती थी, तुम्हारी सामान्य-से-सामान्य चीज़ें भी धन्यवाद के साथ स्वीकार कर लेती थी, और ज़रूरत पड़ने पर तुमसे रुपए भी माँग लेती थी, अगर तुमने अपने धनोन्माद में इसका कोई दूसरा अर्थ निकाल लिया, तो मैं तुम्हें क्षमा करूँगी। यह पुरुष-प्रकृति का अपवाद नहीं; मगर यह समझ लो कि धन ने आज तक किसी नारी के हृदय पर विजय नहीं पायी, और न कभी पायेगा।