गोदान [Godan]
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होरी क़दम बढ़ाये चला जाता था। पगडंडी के दोनों ओर ऊख के पौधों की लहराती हुई हरियाली देख कर उसने मन में कहा -- भगवान् कहीं गौं से बरखा कर दें और डाँड़ी भी सुभीते से रहे, तो एक गाय ज़रूर लेगा। देशी गायें तो न दूध दें न उनके बछवे ही किसी काम के हों। बहुत हुआ तो तेली के काल्हू में चले। नहीं, वह पछाईं गाय लेगा। उसकी ख़ूब सेवा करेगा। कुछ नहीं तो चार-पाँच सेर दूध होगा। गोबर दूध के लिए तरस-तरस कर रह जाता है। इस उमिर में न खाया-पिया, तो फिर कब खायेगा। साल-भर भी दूध पी ले, तो देखने लायक़ हो जाय। बछवे भी अच्छे बैल निकलेंगे। दो सौ से कम की गोंई न होगी। फिर, गऊ से ही तो द्‌वार की सोभा है। सबेरे-सबेरे गऊ के ...more
Vikrant
Desire for western cow vs desi cow even in godan
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'जिस तरह मर्द के मर जाने से औरत अनाथ हो जाती है, उसी तरह औरत के मर जाने से मर्द के हाथ-पाँव टूट जाते हैं। मेरा तो घर उजड़ गया महतो, कोई एक लोटा पानी देनेवाला भी नहीं।’ गत वर्ष भोला की स्त्री लू लग जाने से मर गयी थी। यह होरी जानता था, लेकिन पचास बरस का खंखड़ भोला भीतर से इतना स्निग्ध है, वह न जानता था। स्त्री की लालसा उसकी आँखों में सजल हो गयी थी। होरी को आसन मिल गया। उसकी व्यावहारिक कृषक-बुद्धि सजग हो गयी। 'पुरानी मसल झूठी थोड़ी है -- बिन घरनी घर भूत का डेरा। कहीं सगाई नहीं ठीक कर लेते?’
Vikrant
Without a wife, home is just an adda of ghosts
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होरी को एक नयी युक्ति सूझ गयी। बोला -- सोना बड़े आदमियों के लिए है। हम ग़रीबों के लिए तो रूपा ही है। जैसे जौ को राजा कहते हैं, गेहूँ को चमार; इसलिए न कि गेहूँ बड़े आदमी खाते हैं, जौ हम लोग खाते हैं। सोना के पास इस सबल युक्ति का कोई जवाब न था। परास्त होकर बोली -- तुम सब जने एक ओर हो गये, नहीं रुपिया को रुलाकर छोड़ती। रूपा ने उँगली मटकाकर कहा -- ए राम, सोना चमार -- ए राम, सोना चमार। इस विजय का उसे इतना आनन्द हुआ कि बाप की गोद में रह न सकी। ज़मीन पर कूद पड़ी और उछल-उछलकर यही रट लगाने लगी -- रूपा राजा, सोना चमार -- रूपा राजा, सोना चमार!
Vikrant
Wheat vs malt
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होरी ने मुँह का पसीना पोंछकर कहा -- उसी की चिन्ता तो मारे डालती है दादा -- अनाज तो सब-का-सब खलिहान में ही तुल गया। ज़मींदार ने अपना लिया, महाजन ने अपना लिया। मेरे लिए पाँच सेर अनाज बच रहा। यह भूसा तो मैंने रातोंरात ढोकर छिपा दिया था, नहीं तिनका भी न बचता। ज़मींदार तो एक ही हैं; मगर महाजन तीनतीन हैं, सहुआइन अलग, मँगरू अलग और दातादीन पण्डित अलग। किसी का ब्याज भी पूरा न चुका। ज़मींदार के भी आधे रुपए बाक़ी पड़ गये। सहुआइन से फिर रुपए उधार लिये तो काम चला। सब तरह किफ़ायत कर के देख लिया भैया, कुछ नहीं होता। हमारा जनम इसी लिए हुआ है कि अपना रक्त बहायें और बड़ों का घर भरें। मूलका दुगना सूद भर चुका; पर मूल ...more
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Vikrant
State of farmers unfortunately hasnt changed much! #MunshiPremChand #Godan
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झुनिया ने कलसा न दिया। कुएँ के जगत पर जाकर मुस्कराती हुई बोली -- तुम हमारे मेहमान हो। कहोगे एक लोटा पानी भी किसी ने न दिया। 'मेहमान काहे से हो गया। तुम्हारा पड़ोसी ही तो हूँ।’ पड़ोसी साल-भर में एक बार भी सूरत न दिखाये, तो मेहमान ही है।’ रोज़-रोज़ आने से मरजाद भी तो नहीं रहती।’ झुनिया हँसकर तिरछी नज़रों से देखती हुई बोली -- वही मरजाद तो दे रही हूँ। महीने में एक बेर आओगे, ठंडा पानी दूँगी। पंद्रहवें दिन आओगे, चिलम पाओगे। सातवें दिन आओगे, ख़ाली बैठने को माची दूँगी। रोज़-रोज़ आओगे, कुछ न पाओगे। 'दरसन तो दोगी?' 'दरसन के लिए पूजा करनी पड़ेगी।' यह कहते-कहते जैसे उसे कोई भूली हुई बात याद आ गयी। उसका मुँह उदास ...more
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Vikrant
Flirting in old days
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ओंकारनाथ को राय साहब की रचना-शक्ति में बहुत संदेह था। उनका ख़्याल था कि प्रतिभा तो ग़रीबी ही में चमकती है दीपक की भाँति, जो अँधेरे ही में अपना प्रकाश दिखाता है। उपेक्षा के साथ, जिसे छिपाने की भी उन्होंने चेष्टा नहीं की, पंडित ओंकारनाथ ने मुँह फेर लिया।
Vikrant
Talent shines in poverty
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मैं चाहता हूँ हमारा जीवन हमारे सिद्धांतों के अनुकूल हो। आप कृषकों के शुभेच्छु हैं, उन्हें तरह-तरह की रियायत देना चाहते हैं, ज़मींदारों के अधिकार छीन लेना चाहते हैं, बल्कि उन्हें आप समाज का शाप कहते हैं, फिर भी आप ज़मींदार हैं, वैसे ही ज़मींदार जैसे हज़ारों और ज़मींदार हैं। अगर आपकी धारणा है कि कृषकों के साथ रियायत होनी चाहिए, तो पहले आप ख़ुद शुरू करें -- काश्तकारों को बग़ैर नज़राने लिए पट्टे लिख दें, बेगार बंद कर दें, इज़ाफ़ा लगान को तिलांजलि दे दें, चरावर ज़मीन छोड़ दें। मुझे उन लोगों से ज़रा भी हमदर्दी नहीं है, जो बातें तो करते हैं कम्युनिस्टों की-सी, मगर जीवन है रईसों का-सा, उतना ही विलासमय, ...more
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Vikrant
Communist philosophy
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मैं इसे स्वीकार करता हूँ कि किसी को भी दूसरे के श्रम पर मोटे होने का अधिकार नहीं है। उपजीवी होना घोर लज्जा की बात है। कर्म करना प्राणीमात्र का धर्म है। समाज की ऐसी व्यवस्था, जिसमें कुछ लोग मौज करें और अधिक लोग पी. और खपें, कभी सुखद नहीं हो सकती। पूँजी और शिक्षा, जिसे मैं पूँजी ही का एक रूप समझता हूँ इनका किला जितनी जल्द टूट जाय, उतना ही अच्छा है। जिन्हें पेट की रोटी मयस्सर नहीं, उनके अफ़सर और नियोजक दस-दस पाँच-पाँच हज़ार फटकारें, यह हास्यास्पद है और लज्जास्पद भी। इस व्यवस्था ने हम ज़मींदारों में कितनी विलासिता, कितना दुराचार, कितनी पराधीनता और कितनी निर्लज्जता भर दी है, यह मैं ख़ूब जानता हूँ; ...more
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Vikrant
विचार और व्यवहार में फर्क का वर्णन |
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‘मुझमें और आपमें अंतर इतना ही है कि मैं जो कुछ मानता हूँ उस पर चलता हूँ। आप लोग मानते कुछ हैं, करते कुछ हैं। धन को आप किसी अन्याय से बराबर फैला सकते हैं। लेकिन बुद्धि को, चरित्र को, और रूप को, प्रतिभा को और बल को बराबर फैलाना तो आपकी शक्ति के बाहर है। छोटे-बड़े का भेद केवल धन से ही तो नहीं होता। मैंने बड़े-बड़े धन-कुबेरों को भिक्षुकों के सामने घुटने टेकते देखा है, और आपने भी देखा होगा। रूप के चौखट पर बड़े-बड़े महीप नाक रगड़ते हैं। क्या यह सामाजिक विषमता नहीं है? आप रूप की मिसाल देंगे। वहाँ इसके सिवाय और क्या है कि मिल के मालिक ने राज कर्मचारी का रूप ले लिया है। बुद्धि तब भी राज करती थी, अब भी करती ...more
Vikrant
Brain vs wealth
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'तो सुनिए, फ़िलासफ़र हमेशा मुर्दा-दिल होते हैं, जब देखिए, अपने विचारों में मगन बैठे हैं। आपकी तरफ़ ताकेंगे, मगर आपको देखेंगे नहीं; आप उनसे बातें किये जायँ, कुछ सुनेंगे नहीं। जैसे शून्य में उड़ रहे हों। '
Vikrant
Philosopher
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'विवाह को मैं सामाजिक समझौता समझता हूँ और उसे तोड़ने का अधिकार न पुरुष को है न स्त्री को। समझौता करने के पहले आप स्वाधीन हैं, समझौता हो जाने के बाद आपके हाथ कट जाते हैं।' 'तो आप तलाक़ के विरोधी हैं, क्यों?' 'पक्का। ''और मुक्त भोग वाला सिद्‌धांत?' 'वह उनके लिए है, जो विवाह नहीं करना चाहते।' 'अपनी आत्मा का संपूर्ण विकास सभी चाहते हैं;फ़िर विवाह कौन करे और क्यों करे? ' 'इसीलिए कि मुक्ति सभी चाहते हैं; पर ऐसे बहुत कम हैं, जो लोभ से अपना गला छुड़ा सकें।' 'आप श्रेष्ठ किसे समझते हैं, विवाहित जीवन को या अविवाहित जीवन को?' 'समाज की दृष्टि से विवाहित जीवन को, व्यक्ति की दृष्टि से अविवाहित जीवन को।'
Vikrant
Marriage is a social contract
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जो भोगी नहीं हैं वह संग्राम में भी पूरे उत्साह से नहीं जा सकता। जो रमणी से प्रेम नहीं कर सकता, उसके देश-प्रेम में मुझे विश्वास नहीं।
Vikrant
Bhoga n yoga
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मिस्टर तंखा दाँव-पेंच के आदमी थे, सौदा पटाने में, मुआमला सुलझाने में, अड़ंगा लगाने में, बाल- से तेल निकालने में, गला दबाने में, दुम झाड़कर निकल जाने में बड़े सिद्‌धहस्त। कहिये रेत में नाव चला दें, पत्थर पर दूब उगा दें। ताल्लुक़ेदारों को महाजनों से क़रज़ दिलाना, नयी कंपनियाँ खोलना, चुनाव के अवसर पर उम्मेदवार खड़े करना, यही उनका व्यवसाय था। खासकर चुनाव के समय उनकी तकदीर चमकती थी। किसी पोढ़े उम्मेद-वार को खड़ा करते, दिलोज़ान से उसका काम करते और दस-बीस हज़ार बना लेते। जब कांग्रेस का ज़ोर था कांग्रेस के उम्मेदवारों के सहायक थे। जब सांप्रदायिक दल का ज़ोर हुआ, तो हिंदूसभा की ओर से काम करने लगे; मगर इस उलट-फेर ...more
Vikrant
Political broker
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मिरज़ा साहब ने दोपहरी इसी गाँव में काटने का निश्चय किया। गाँव के आदमियों को जमा किया। शराब मँगवायी, शिकार पका, समीप के बाज़ार से घी और मैदा मँगाया और सारे गाँव को भोज दिया। छोटे-बड़े स्त्री-पुरुष सबों ने दावत उड़ायी। सर्दी ने ख़ूब शराब पी और मस्त होकर शाम तक गाते रहे। और मिरज़ाजी बालकों के साथ बालक, शराबियों के साथ शराबी, बूढ़ों के साथ बूढ़े, जवानों के साथ जवान बने हुए थे। इतनी देर में सारे गाँव से उनका इतना घनिष्ठ परिचय हो गया था, मानो यहीं के निवासी हों। लड़के तो उनपर लदे पड़ते थे। कोई उनकी फुँदनेदार टोपी सिर पर रखे लेता था, कोई उनकी राइफ़ल कंधे पर रखकर अकडता हुआ चलता था, कोई उनकी क़लाई की घड़ी खोलकर ...more
Vikrant
Life should b a party
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'हाँ दादा, भला वह बात भूल सकता हूँ। तुमने इतना न किया होता, तो तुमसे लड़ने के लिए कैसे बचा रहता। ' होरी को ऐसा मालूम हुआ कि हीरा का स्वर भारी हो गया है। उसका गला भी भर आया। 'बेटा, लड़ाई-झगड़ा तो जिंदगी का धरम है। इससे जो अपने हैं, वह पराये थोड़े ही हो जाते हैं। जब घर में चार आदमी रहते हैं, तभी तो लड़ाई-झगड़े भी होते हैं। जिसके कोई है ही नहीं, उसके कौन लड़ाई करेगा।' दोनों ने साथ चिलम पी। तब हीरा अपने घर गया, होरी अंदर भोजन करने चला।
Vikrant
Fights with loved ones
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ऐसे असाधारण कांड पर गाँव में जो कुछ हलचल मचना चाहिए था, वह मचा और महीनों तक मचता रहा । झुनिया के दोनों भाई लाठियाँ लिये गोबर को खोजते फिरते थें । भोला ने क़सम खायी कि अब न झुनिया का मुँह देखेंगे और न इस गाँव का । होरी से उन्होंने अपनी सगाई की जो बातचीत की थी, वह अब टूट गयी थी । अब वह अपनी गाय के दाम लेंगे और नक़द और इसमें विलंब हुआ तो होरी पर दावा करके उसका घर-दवार नीलाम करा लेंगे । गाँववालों ने होरी को जाति-बाहर कर दिया । कोई उसका हुक़्क़ा नहीं पीता, न उसके घर का पानी पीता है । पानी बंद कर देने की कुछ बातचीत थी; लेकिन धनिया का चंडी-रूप सब देख चुके थे; इसलिये किसी की आगे आने की हिम्मत न पड़ी
Vikrant
Hukka paani band
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वैद्य एक बार रोगी को चंगा कर दे, फिर रोगी उसके हाथों विष भी ख़ुशी से पी लेगा–अब जैसे आज ही बहू घर से रूठकर चली गयी, तो किसकी हेठी हुई! बहू को कौन जानता है? किसकी लड़की है, किसकी नातिन है, कौन जानता है! संभव है, उसका बाप घसियारा ही रहा हो…। बुढ़िया ने निश्चयात्मक भाव से कहा–घसियारा तो है ही बेटा, पक्का घसियारा। सबेरे उसका मुँह देख लो, तो दिन-भर पानी न मिले। गोबर बोला–तो ऐसे आदमी की क्या हँसी हो सकती है! हँसी हुई तुम्हारी और तुम्हारे आदमी की। जिसने पूछा, यही पूछा कि किसकी बहू है? फिर वह अभी लड़की है, अबोध, अल्हड़। नीच माता-पिता की लड़की है, अच्छी कहाँ से बन जाय! तुमको तो बूढ़े तोते को राम-नाम पढ़ाना ...more
Vikrant
Allegory of doctor
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‘उस कोठी का सुभीते से निकलना ज़रा मुश्किल है। आप जानते हैं, वह जगह बस्ती से कितनी दूर है; मगर ख़ैर, देखूँगा। आप उसकी क़ीमत का क्या अंदाज़ा करते हैं? राय साहब ने एक लाख पचीस हज़ार बताए। पंद्रह बीघे ज़मीन भी तो है उसके साथ। खन्ना स्तंभित हो गये! बोले–आप आज के पंद्रह साल पहले का स्वप्न देख रहे हैं राय साहब! आपको मालूम होना चाहिए कि इधर जायदादों के मूल्य में पचास परसेंट की कमी हो गई है। रायसाहब ने बुरा मानकर कहा–जी नहीं, पन्द्रह साल पहले उसकी क़ीमत डेढ़ लाख थी। ‘मैं ख़रीददार की तलाश में रहूँगा; मगर मेरा कमीशन पाँच प्रतिशत होगा आपसे।’ ‘औरों से शायद दस प्रतिशत हो क्यों; क्या करोगे इतने रुपये लेकर?’
Vikrant
Real estate rates
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‘जी नहीं, व्यक्ति भी एक चीज़ है। लेकिन मैंने केवल एक बार जेल जाने के सिवा और क्या जन-सेवा की है? और सच पूछिए तो उस बार भी मैं अपने मतलब ही से गयी थी, उसी तरह जैसे राय साहब और खन्ना गये थे। इस नई सभ्यता का आधार धन है। विद्या और सेवा और कुल और जाति सब धन के सामने हेय है। कभी-कभी इतिहास में ऐसे अवसर आ जाते हैं, जब धन को आंदोलन के सामने नीचा देखना पड़ता है; मगर इसे अपवाद समझिए। मैं अपनी ही बात कहती हूँ। कोई ग़रीब औरत दवाखाने में आ जाती है, तो घंटों उससे बोलती तक नहीं। पर कोई महिला कार पर आ गई, तो द्वार तक जाकर उसका स्वागत करती हूँ और उसकी ऐसी उपासना करती हूँ, मानो साक्षात् देवी है। मेरा और रानी साहब ...more
Vikrant
Importance of money
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मेहता गंभीर भाव से बोले-आपका ख़याल बिलकुल ग़लत है। मिरज़ाजी। मिस मालती हसीन हैं, खुशमिज़ाज हैं, समझदार हैं, रोशन ख़याल हैं और भी उनमें कितनी ख़ूबियाँ हैं। लेकिन मैं अपनी जीवन-संगिनी में जो बात देखना चाहता हूँ, वह उनमें नहीं है और न शायद हो सकती है। मेरे ज़ेहन में औरत वफ़ा और त्याग की मूतिर् है, जो अपनी बेज़बानी से, अपनी क़ुबार्नी से, अपने को बिलकुल मिटाकर पति की आत्मा का एक अंश बन जाती है। देह पुरुष की रहती है, पर आत्मा स्त्री की होती है। आप कहेंगे, मर्द अपने को क्यों नहीं मिटाता? औरत ही से क्यों इसकी आशा करता है? मर्द में वह सामर्थ्य ही नहीं है। वह अपने को मिटायेगा, तो शून्य हो जायगा। वह किसी खोह में ...more
Vikrant
Male vs female
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‘मगर मिस मालती आपको छोड़नेवाली नहीं। कहिए लिख दूँ।’ ‘ऐसी औरतों से मैं केवल मनोरंजन कर सकता हूँ, ब्याह नहीं। ब्याह तो आत्म- समर्पण है।’ ‘अगर ब्याह आत्म-समर्पण है, तो प्रेम क्या है?’ ‘प्रेम जब आत्म-समर्पण का रूप लेता है, तभी ब्याह है; उसके पहले ऐयाशी है।’ मेहता ने कपड़े पहने और विदा हो गये। शाम हो गयी थी। मिरज़ा ने जाकर देखा, तो गोबर अभी तक पेड़ों को सींच रहा था। मिरज़ा ने प्रसन्न होकर कहा-जाओ, अब तुम्हारी? छुट्टी है। कल फिर आओगे? गोबर ने कातर भाव से कहा-मैं कहीं नौकरी चाहता हूँ मालिक! ‘नौकरी करना है, तो हम तुझे रख लेंगे।’
Vikrant
Love is aiyyashi without self sacrifice
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मैं प्राणियों के विकास में स्त्री के पद को पुरुषों के पद से श्रेष्ठ समझता हूँ, उसी तरह जैसे प्रेम और त्याग और श्रद्धा को हिंसा और संग्राम और कलह से श्रेष्ठ समझता हूँ। अगर हमारी देवियाँ सृष्टि और पालन के देव-मंदिर से हिंसा और कलह के दानव-क्षेत्र में आना चाहती हैं, तो उससे समाज का कल्याण न होगा। मैं इस विषय में दृढ़ हूँ। पुरुष ने अपने अभिमान में अपनी दानवी कीर्ति को अधिक महत्व दिया। वह अपने भाई का स्वत्व छीनकर और उसका रक्त बहाकर समझने लगा, उसने बहुत बड़ी विजय पायी। जिन शिशुओं को देवियों ने अपने रक्त से सिरजा और पाला उन्हें बम और मशीनगन और सहस्रों टैंकों का शिकार बनाकर वह अपने को विजेता समझता है। ...more
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Vikrant
Women vs men
44%
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मेहता ने उत्तर दिया -- संसार में सबसे बड़े अधिकार सेवा और त्याग से मिलते हैं और वह आपको मिले हुए हैं । उन अधिकारों के सामने वोट कोई चीज़ नहीं । मुझे खेद है, हमारी बहनें पश्चिम का आदर्श ले रही हैं, जहाँ नारी ने अपना पद खो दिया है और स्वामिनी से गिरकर विलास की वस्तु बन गयी है । पश्चिम की स्त्री स्वच्छंद होना चाहती है; इसीलिए कि वह अधिक से अधिक विलास कर सके । हमारी माताओं का आदर्श कभी विलास नहीं रहा । उन्होंने केवल सेवा के अधिकार से सदैव गृहस्थी का संचालन किया है । पश्चिम में जो चीज़ें अच्छी हैं, वह उनसे लीजिए । संस्कृति में सदैव आदान-प्रदान होता आया है; लेकिन अंधी नकुल तो मानसिक दुर्बलता का ही ...more
Vikrant
Women of east getting influenced from west
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सरोज उत्तेजित होकर बोली -- हम पुरुषों से सलाह नहीं माँगती । अगर वह अपने बारे में स्वतंत्र हैं, तो स्त्रियाँ भी अपने विषय में स्वतंत्र हैं । युवतियाँ अब विवाह को पेशा नहीं बनाना चाहतीं । वह केवल प्रेम के आधार पर विवाह करेंगी । ज़ोर से तालियाँ बजीं, विशेषकर अगली पंक्तियों में जहाँ महिलाएँ थीं। मेहता ने जवाब दिया -- जिसे तुम प्रेम कहती हो, वह धोखा है, उद्दीप्त लालसा का विकृत रूप, उसी तरह जैसे संन्यास केवल भीख माँगने का संस्कृत रूप है । वह प्रेम अगर वैवाहिक जीवन में कम है, तो मुक्त विलास में बिलकुल नहीं है । सच्चा आनंद, सच्ची शांति केवल सेवा-व्रत में है । वही अधिकार का स्रोत है, वही शक्ति का उद्‌गम ...more
Vikrant
Marriage is for selfless service
44%
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'अच्छी बात है, मुझी से सीखिए । पहली बात यही है कि भूल जाइए कि नारी श्रेष्ठ है और सारी ज़िम्मेदारी उसी पर है, श्रेष्ठ पुरुष है और उसी पर गृहस्थी का सारा भार है । नारी में सेवा और संयम और कर्तव्य सब कुछ वही पैदा कर सकता है; अगर उसमें इन बातों का अभाव है, तो नारी में भी अभाव रहेगा । नारियों में आज जो यह विद्रोह है, इसका कारण पुरुष का इन गुणों से शून्य हो जाना है ।
Vikrant
Role of man is critical for values in woman too
46%
Flag icon
‘अच्छी बात है। मैं आपकी चुनौती स्वीकार करता हूँ। मैं अब तक आपको मित्र समझता आया था; मगर अब आप लड़ने ही पर तैयार हैं, तो लड़ाई ही सही। आख़िर मैं आपके पत्र को पँचगुना चन्दा क्यों देता हूँ? केवल इसीलिए कि वह मेरा ग़ुलाम बना रहे। मुझे परमात्मा ने रईस बनाया है। पचहत्तर रुपया देता हूँ, इसीलिए कि आपका मुँह बंद रहे। जब आप घाटे का रोना रोते हैं और सहायता की अपील करते हैं, और ऐसी शायद ही कोई तिमाही जाती हो, जब आपकी अपील न निकलती हो, तो मैं ऐसे मौक़े पर आपकी कुछ न कुछ मदद कर देता हूँ। किसलिए? दीपावली, दशहरा, होली में आपके यहाँ बैना भेजता हूँ, और साल में पच्चीस बार आपकी दावत करता हूँ, किसलिए? आप रिश्वत और ...more
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Vikrant
Media & zamidaari
47%
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ओंकारनाथ ने कृतज्ञता से सिर झुकाकर कहा -- मैं धन्यवाद के साथ आपका दान स्वीकार करता हूँ। खेद यही है कि पत्रों की ओर से जनता कितनी उदासीन है। स्कूल और कालिजों और मंदिरों के लिए धन की कमी नहीं है पर आज तक एक भी ऐसा दानी न निकला जो पत्रों के प्रचार के लिए दान देता, हालाँकि जन-शिक्षा का उद्देश्य जितने कम ख़र्च में पत्रों से पूरा हो सकता है, और किसी तरह नहीं हो सकता। जेसे शिक्षालयों को संस्थाओं द्वारा सहायता मिला करती है, ऐसे ही अगर पत्रकारों को मिलने लगे, तो इन बेचारों को अपना जितना समय और स्थान विज्ञापनों की भेंट करना पड़ता है, वह क्यों करना पड़े? मैं आपका बड़ा अनुगृहीत हूँ।
Vikrant
journlalism should get institutional support versus advesrtising models
53%
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मेहता ने मुँह बनाकर कहा -- शराब अगर लोगों को पागल कर देती है, तो इसलिए उसे क्या पानी से अच्छा समझा जाय, जो प्यास बुझाता है, जिलाता है, और शांत करता है? गोविंदी ने विनोद की शरण लेकर कहा -- कुछ भी हो, मैं तो यह देखती हूँ कि पानी मारा-मारा फिरता है और शराब के लिए घर-द्वार बिक जाते हैं, और शराब जितनी ही तेज़ और नशीली हो, उतनी ही अच्छी। मैं तो सुनती हूँ, आप भी शराब के उपासक हैं?
Vikrant
Alcohol versus water
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रुपए कमाना भी जानता है; और ख़रच करना भी जानता है। गाड़कर रख लो, तो कौन देखता है? धन की यही शोभा है।
Vikrant
Money without show is nothing
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‘ले जाने को मैं नहीं रोकती, लेकिन परदेस में बाल-बच्चों के साथ रहना, न कोई आगे न पीछे; सोचो कितना झंझट है।’ ‘परदेस में संगी-साथी निकल ही आते हैं अम्माँ और यह तो स्वारथ का संसार है। जिसके साथ चार पैसे ग़म खाओ वही अपना। ख़ाली हाथ तो माँ-बाप भी नहीं पूछते।’
Vikrant
Khaali haath to maa baap bhi nahi poochte
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कुँवर साहब दुर्वासनाओं के भंडार थे। शराब, गाँजा, अफ़ीम, मदक, चरस, ऐसा कोई नशा न था, जो वह न करते हों। और ऐयाशी तो रईस की शोभा है। वह रईस ही क्या, जो ऐयाश न हो। धन का उपभोग और किया ही कैसे जाय? मगर इन सब दुर्गुणों के होते हुए भी वह ऐसे प्रतिभावान् थे कि अच्छे-अच्छे विद्वान् उनका लोहा मानते थे। संगीत, नाट्यकला, हस्तरेखा, ज्योतिष, योग, लाठी, कुश्ती, निशानेबाज़ी आदि कलाओं में अपना जोड़ न रखते थे। इसके साथ ही बड़े दबंग और निर्भीक थे। राष्ट्रीय आंदोलन में दिल खोलकर सहयोग देते थे; हाँ गुप्त रूप से। अधिकारियों से यह बात छिपी न थी, फिर भी उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी और साल में एक-दो बार गवर्नर साहब भी उनके ...more
Vikrant
Rich without aiyyashi
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मेहता ने गर्व से कहा -- यह सब आप लोगों की दया है। और यह केवल तीन घंटों का परिश्रम है। राजा सूर्यप्रतापसिंह ने शायद ही किसी सार्वजनिक कार्य में भाग लिया हो; पर आज तो उन्होंने बे-कहे-सुने चेक लिख दिया! देश में जागृति है। जनता किसी भी शुभ काम में सहयोग देने को तैयार है। केवल उसे विश्वास होना चाहिए कि उसके दान का सद्व्यय होगा। आपसे तो मुझे बड़ी आशा है, मिस्टर खन्ना!
Vikrant
Crowdfunding basics
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मेहता ने खन्ना की ख़ुशामद का पहलू अख़्तियार किया -- मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है खन्नाजी! आप अभी इस काम में नहीं शरीक होना चाहते, न सही, लेकिन कभी न कभी ज़रूर आयेंगे। लक्ष्मीपतियों की बदौलत ही हमारी बड़ी-बड़ी संस्थाएँ चलती हैं। राष्ट्रीय आंदोलन को दो-तीन साल तक किसने इतनी धूम से चलाया! इतनी धर्मशालायें और पाठशालायें कौन बनवा रहा है? आज संसार का शासन-सूत्र बैंकरों के हाथ में है। सरकार उनके हाथ का खिलौना है। मैं भी आपसे निराश नहीं हूँ। जो व्यक्ति राष्ट्र के लिए जेल जा सकता है, उसके लिए दो-चार हज़ार ख़र्च कर देना कोई बड़ी बात नहीं है। हमने तय किया है, इस शाला का बुनियादी पत्थर गोविंदी देवी के हाथों ...more
Vikrant
Bankers
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मैं रुपवती हूँ। तुम भी मेरे अनेक चाहनेवालों में से एक हो। वह मेरी कृपा थी कि जहाँ मैं औरों के उपहार लौटा देती थी, तुम्हारी सामान्य-से-सामान्य चीज़ें भी धन्यवाद के साथ स्वीकार कर लेती थी, और ज़रूरत पड़ने पर तुमसे रुपए भी माँग लेती थी, अगर तुमने अपने धनोन्माद में इसका कोई दूसरा अर्थ निकाल लिया, तो मैं तुम्हें क्षमा करूँगी। यह पुरुष-प्रकृति का अपवाद नहीं; मगर यह समझ लो कि धन ने आज तक किसी नारी के हृदय पर विजय नहीं पायी, और न कभी पायेगा।
Vikrant
womans heart cannot be won by money
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दातादीन ने सुरती मलते हुए कहा -- कुछ सुना, सरकार भी महाजनों से कह रही है कि सूद का दर घटा दो, नहीं डिग्री न मिलेगी। झिंगुरी तमाखू फाँककर बोले -- पंडित मैं तो एक बात जानता हूँ। तुम्हें गरज पड़ेगी तो सौ बार हमसे रुपए उधार लेने आओगे, और हम जो ब्याज चाहेंगे, लेंगे। सरकार अगर असामियों को रुपए उधार देने का कोई बंदोबस्त न करेगी, तो हमें इस क़ानून से कुछ न होगा। हम दर कम लिखायेंगे; लेकिन एक सौ में पचीस पहले ही काट लेंगे। इसमें सरकार क्या कर सकती है। ‘यह तो ठीक है; लेकिन सरकार भी इन बातों को ख़ूब समझती है। इसकी भी कोई रोक निकालेगी, देख लेना।’ ‘इसकी कोई रोक हो ही नहीं सकती।’ ‘अच्छा, अगर वह शर्त कर दे, जब ...more
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Debt & government regulation
67%
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तुम जजमानी को भीख समझो, मैं तो उसे ज़मींदारी समझता हूँ; बंकघर। ज़मींदार मिट जाय, बंकघर टूट जाय, लेकिन जजमानी अंत तक बनी रहेगी। जब तक हिंदू-जाति रहेगी, तब तक ब्राह्मण भी रहेंगे और जजमानी भी रहेगी। सहालग में मज़े से घर बैठे सौ-दो सौ फटकार लेते हैं। कभी भाग लड़ गया, तो चार-पाँच सौ मार लिया। कपड़े, बरतन, भोजन अलग। कहीं-न-कहीं नित ही कार-परोजन पड़ा ही रहता है। कुछ न मिले तब भी एक-दो थाल और दो-चार आने दक्षिणा मिल ही जाते हैं। ऐसा चैन न ज़मींदारी में है, न साहूकारी में। और फिर मेरा तो सिलिया से जितना उबार होता है, उतना ब्राह्मन की कन्या से क्या होगा? वह तो बहुरिया बनी बैठी रहेगी। बहुत होगा रोटियाँ ...more
Vikrant
The business case of a brahmin
68%
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सिलिया का बाप हरखू साठ साल का बूढ़ा था; काला, दुबला, सूखी मिर्च की तरह पिचका हुआ; पर उतना ही तीक्ष्ण। बोला -- झगड़ा कुछ नहीं है ठाकुर, हम आज या तो मातादीन को चमार बना के छोड़ेंगे, या उनका और अपना रकत एक कर देंगे। सिलिया कन्या जात है, किसी-न-किसी के घर जायगी ही। इस पर हमें कुछ नहीं कहना है; मगर उसे जो कोई भी रखे, हमारा होकर रहे। तुम हमें ब्राह्मण नहीं बना सकते, मुदा हम तुम्हें चमार बना सकते हैं। हमें ब्राह्मण बना दो, हमारी सारी बिरादरी बनने को तैयार है। जब यह समरथ नहीं है, तो फिर तुम भी चमार बनो। हमारे साथ खाओ-पिओ, हमारे साथ उठो-बैठो। हमारी इज़्ज़त लेते हो, तो अपना धरम हमें दो। दातादीन ने लाठी ...more
Vikrant
Brahmin vs chamar
72%
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नोखेराम को अगर यह जोम था कि हम ब्राह्मण हैं और कायस्थों को उँगली पर नचाते हैं, तो पटेश्वरी को भी घमंड था कि हम कायस्थ हैं, क़लम के बादशाह, इस मैदान में कोई हमसे क्या बाज़ी ले जायगा। फिर वह ज़मींदार के नौकर नहीं, सरकार के नौकर हैं, जिसके राज में सूरज कभी नहीं डूबता। नोखेराम अगर एकादशी को व्रत रखते हैं और पाँच ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं तो पटेश्वरी हर पूणर्मासी को सत्यनारायण की कथा सुनेंगे और दस ब्राह्मणों को भोजन करायेंगे। जब से उनका जेठा लड़का सज़ावल हो गया था, नोखेराम इस ताक में रहते थे कि उनका लड़का किसी तरह दसवाँ पास कर ले, तो उसे भी कहीं नक़ल-नवीसी दिला दें। इसलिए हुक्काम के पास फ़सली सौगातें ...more
Vikrant
Brahmin vs kayasth
73%
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वह टट्टी की आड़ से शिकार खेलनेवाले जीव थे, मगर नोहरी भोला के स्वभाव से परिचित हो चुकी थी।
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Tatti ki aad me shikaar khelna
74%
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मगर ज़मीन दोनों को एक-सी प्यारी थी। उसी पर तो उनकी इज़्ज़त और आबरू अवलिंबत थी। जिसके पास ज़मीन नहीं, वह गृहस्थ नहीं, मजूर है। होरी ने कुछ जवाब न पाकर पूछा -- तो क्या कहती है? धनिया ने आहत कंठ से कहा -- कहना क्या है। गौरी बरात लेकर आयॅंगे। एक जून खिला देना। सबेरे बेटी बिदा कर देना। दुनिया हँसेगी, हँस ले। भगवान् की यही इच्छा है, कि हमारी नाक कटे, मुँह में कालिख लगे तो हम क्या करेंगे!
Vikrant
Without land is labour
75%
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डूब जाना चाहती थीं। किसी काम में उसका मन न लगता। खोंचा लेकर जाता, तो घंटे-भर ही में लौट आता। मनोरंजन का कोई दूसरा सामान न था। पड़ोस के मजूर और इक्केवान रात-रात भर ताश और जुआ खेलते थे। पहले वह भी ख़ूब खेलता था; मगर अब उसके लिए केवल मनोरंजन था, झुनिया के साथ हासविलास। थोड़े ही दिनों में झुनिया इस जीवन से ऊब गयी। वह चाहती थी, कहीं एकांत में जाकर बैठे, ख़ूब निश्चिंत होकर लेटे-सोये; मगर वह एकांत कहीं न मिलता। उसे अब गोबर पर ग़ुस्सा आता। उसने शहर के जीवन का कितना मोहक चित्र खींचा था, और यहाँ इस काल-कोठरी के सिवा और कुछ नहीं। बालक से भी उसे चिढ़ होती थी। कभी-कभी वह उसे मारकर बाहर निकाल देती और अंदर ...more
Vikrant
City lifw
75%
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वह लेटी होती और लल्लू आकर ज़बरदस्ती उसकी छाती पर बैठ जाता और स्तन मुँह में लेकर चबाने लगता। वह अब दो साल का हो गया था। बड़े तेज़ दाँत निकल आये थे। मुँह में दूध न जाता, तो वह क्रोध में आकर स्तन में दाँत काट लेता; लेकिन झुनिया में अब इतनी शक्ति भी न थी कि उसे छाती पर से ढकेल दे। उसे हरदम मौत सामने खड़ी नज़र आती। पति और पुत्र किसी से भी उसे स्नेह न था। सभी अपने मतलब के यार हैं। बरसात के दिनों में जब लल्लू को दस्त आने लगे तो उसने दूध पीना छोड़ दिया, तो झुनिया को सिर से एक विपत्ति टल जाने का अनुभव हुआ; लेकिन जब एक सप्ताह के बाद बालक मर गया, तो उसकी स्मृति पुत्र-स्नेह से सजीव होकर उसे रुलाने लगी। और जब ...more
Vikrant
Love vs craving for lallu
76%
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गोबर ने खोंचे से निराश होकर शक्कर के मिल में नौकरी कर ली थी। मिस्टर खन्ना ने पहले मिल से प्रोत्साहित होकर हाल में यह दूसरा मिल खोल दिया था। गोबर को वहाँ बड़े सबेरे जाना पड़ता, और दिन-भर के बाद जब वह दिया-जले घर लौटता, तो उसकी देह में ज़रा भी जान न रहती थी। घर पर भी उसे इससे कम मेहनत न करनी पड़ती थी; लेकिन वहाँ उसे ज़रा भी थकन न होती थी। बीच-बीच में वह हँस-बोल भी लेता था। फिर उस खुले मैदान में, उन्मुक्त आकाश के नीचे, जैसे उसकी क्षति पूरी हो जाती थी। वहाँ उसकी देह चाहे जितना काम करे, मन स्वच्छंद रहता था। यहाँ देह की उतनी मेहनत न होने पर भी जैसे उस कोलाहल, उस गति और तूफ़ानी शोर का उस पर बोझ-सा लदा ...more
Vikrant
Alcoholism with migrants
78%
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घास छीलते समय भी सबों में हँसी-दिल्लगी होती रहती। न क़िस्मत का रोना, न मुसीबत का गिला। जीवन की सार्थकता में, अपनों के लिए कठिन से कठिन त्याग में, और स्वाधीन सेवा में जो उल्लास है, उसकी ज्योति एक-एक अंग पर चमकती रहती। बच्चा अपने पैरों पर खड़ा होकर जैसे तालियाँ बजा-बजाकर ख़ुश होता है, उसी का वह अनुभव कर रही थी; मानो उसके प्राणों में आनंद का कोई सोता खुल गया हो। और मन स्वस्थ हो, तो देह कैसे अस्वस्थ रहे! उस एक महीने में जैसे उसका कायाकल्प हो गया हो। उसके अंगों में अब शिथिलता नहीं, चपलता है, लचक है, सुकुमारता है। मुख पर पीलापन नहीं रहा, ख़ून की गुलाबी चमक है। उसका यौवन जो इस बंद कोठरी में पड़े-पड़े ...more
Vikrant
Hard work keepa one healthy
80%
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मेहता ने उन्हें छाती से लगा कर दुखित स्वर में कहा -- खन्नाजी, ज़रा धीरज से काम लीजिए। आप समझदार होकर दिल इतना छोटा करते हैं। दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका सम्मान नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है। आप निर्धन रहकर भी स्त्रियों के विश्वास-पात्र रह सकते हैं और शत्रुओं के भी; बल्कि तब कोई आपका शत्रु रहेगा ही नहीं। आइए, घर चलें। ज़रा आराम कर लेने से आपका चित्त शांत हो जायगा।
Vikrant
Wealth is not permanent
81%
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मैं मानती हूँ कि धन के लिए थोड़ी तपस्या नहीं करनी पड़ती; लेकिन फिर भी हमने उसे जीवन में जितने महत्व की वस्तु समझ रखा है, उतना महत्व उसमें नहीं है। मैं तो ख़ुश हूँ कि तुम्हारे सिर से यह बोझ टला। अब तुम्हारे लड़के आदमी होंगे, स्वार्थ और अभिमान के पुतले नहीं। जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं। बुरा न मानना, अब तक तुम्हारे जीवन का अर्थ था आत्मसेवा, भोग और विलास। दैव ने तुम्हें उस साधन से वंचित करके तुम्हें ज़्यादा ऊँचे और पवित्र जीवन का रास्ता खोल दिया है। यह सिद्धि प्राप्त करने में अगर कुछ कष्ट भी हो, तो उसका स्वागत करो। तुम इसे विपत्ति समझते ही क्यों हो? क्यों नहीं ...more
Vikrant
Wealth degenrates soul
84%
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प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों के बीच में जो सेवा-मार्ग है, चाहे उसे कर्मयोग ही कहो, वही जीवन को सार्थक कर सकता है, वही जीवन को ऊँचा और पवित्र बना सकता है। किसी सर्वज्ञ ईश्वर में उनका विश्वास न था। यद्यपि वह अपनी नास्तिकता को प्रकट न करते थे, इसलिए कि इस विषय में निश्चित रूप से कोई मत स्थिर करना वह अपने लिए असंभव समझते थे; पर यह धारणा उनके मन में दृढ़ हो गयी थी कि प्राणियों के जन्म-मरण, सुख-दुख, पाप-पुण्य में कोई ईश्वरीय विधान नहीं है। उनका ख़्याल था कि मनुष्य ने अपने अहंकार में अपने को इतना महान् बना लिया है कि उसके हर एक काम की प्रेरणा ईश्वर की ओर से होती है। इसी तरह वह टिड्डीयाँ भी ईश्वर को ...more
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Vikrant
Karm yoga versus religion
84%
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और उनकी इस उदार वृत्ति का असर अज्ञात रूप से मालती पर भी पड़ता जाता था। अब तक जितने मर्द उसे मिले, सभी ने उसकी विलास-वृत्ति को ही उसकाया। उसकी त्याग-वृत्ति दिन-दिन क्षीण होती जाती थी; पर मेहता के संसर्ग में आकर उसकी त्याग-भावना सजग हो उठी थी। सभी मनस्वी प्राणियों में यह भावना छिपी रहती है और प्रकाश पाकर चमक उठती है। आदमी अगर धन या नाम के पीछे पड़ा है, तो समझ लो कि अभी तक वह किसी परिष्कृत आत्मा के संपर्क में नहीं आया। मालती अब अक्सर ग़रीबों के घर बिना फ़ीस लिये ही मरीज़ों को देखने चली जाती थी। मरीज़ों के साथ उसके व्यवहार में मृदुता आ गयी थी। हाँ, अभी तक वह शौक़-सिंगार से अपना मन न हटा सकती थी। रंग और ...more
Vikrant
Vilaas versus tyaag
85%
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ज़रा देर में बीस-पच्चीस बच्चे आ गये। मालती उनकी परीक्षा करने लगी। कई बच्चों की आँखें उठी थीं, उनकी आँखों में दवा डाली। अधिकतर बच्चे दुर्बल थे। इसका कारण था, माता-पिता को भोजन अच्छा न मिलना। मालती को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि बहुत कम घरों में दूध होता था। घी के तो सालों दर्शन नहीं होते। मालती ने यहाँ भी उन्हें भोजन करने का महत्व समझाया, जैसा वह सभी गाँवों में किया करती थी। उसका जी इसलिए जलता था कि ये लोग अच्छा भोजन क्यों नहीं करते? उसे ग्रामीणों पर क्रोध आ जाता था। क्या तुम्हारा जन्म इसलिए हुआ है कि तुम मर-मरकर कमाओ और जो कुछ पैदा हो, उसे खा न सको? जहाँ दो-चार बैलों के लिए भोजन है, एक दो गाय-भैसों ...more
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Vikrant
#प्रेमचंद के गांव में तब भी बाल #nutrition एवं महिला विकास समस्या थी और #newIndia में भीI
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