Dhirendra Singh

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अब वह प्रेम की वस्तु नहीं, श्रद्धा की वस्तु थी। अब वह दुरलभ हो गयी थी और दुलभता मनस्वी आत्माओं के लिए उद्योग का मंत्र है।
गोदान [Godan]
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