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Kindle Notes & Highlights
जब दूसरे के पाँवों-तले अपनी गर्दन दबी हुई है, तो उन पाँवों को सहलाने में ही कुशल है।’
जिसकी आत्मा में बल नहीं, अभिमान नहीं, वह और चाहे कुछ हो, आदमी नहीं है।
बूढ़ों के लिए अतीत के सुखों और वर्तमान के दुःखों और भविष्य के सर्वनाश से ज़्यादा मनोरंजक और कोई प्रसंग नहीं होता।
गुन तो आदमी उसमें देखता है, जिसके साथ जनम-भर निबाह करना हो।
'आश्चर्य अज्ञान का दूसरा नाम है।'
जो व्यक्ति कर्म और वचन में सामंजस्य नहीं रख सकता, वह और चाहे जो कुछ हो सिद्धांतवादी नहीं है।'
मुक्ति सभी चाहते हैं; पर ऐसे बहुत कम हैं, जो लोभ से अपना गला छुड़ा सकें।'
सत्य की एक चिनगारी असत्य के एक पहाड़ को भस्म कर सकती है।
मनुष्य के लिए क्षमा और त्याग और अहिंसा जीवन के उच्चतम आदर्श हैं। नारी इस आदर्श को प्राप्त कर चुकी है।
हम सभी पहले मनुष्य हैं, पीछे और कुछ । हमारा जीवन हमारा घर है । वहीं हमारी सृष्टि होती है वहीं हमारा पालन होता है, वहीं जीवन के सारे व्यापार होते हैं; अगर वह क्षेत्र परिमित है, तो अपरिमित कौन-सा क्षेत्र है?
संसार में सबसे बड़े अधिकार सेवा और त्याग से मिलते हैं
हमारी माताओं का आदर्श कभी विलास नहीं रहा । उन्होंने केवल सेवा के अधिकार से सदैव गृहस्थी का संचालन किया है
हममें जीवन की शक्ति इतनी कम है कि भूत और भविष्य में फैला देने से वह और भी क्षीण हो जाती है।
धन ने आज तक किसी नारी के हृदय पर विजय नहीं पायी, और न कभी पायेगा।
जड़ पर जब तक कुल्हाड़े न चलेंगे, पत्तियाँ तोड़ने से कोई नतीजा नहीं।
नारी में दान और त्याग होना चाहिए। उसकी यही सबसे बड़ी विभूति है।
अब वह प्रेम की वस्तु नहीं, श्रद्धा की वस्तु थी। अब वह दुरलभ हो गयी थी और दुलभता मनस्वी आत्माओं के लिए उद्योग का मंत्र है।
प्रेम में कुछ मान भी होता है, कुछ महत्व भी। श्रद्धा तो अपने को मिटा डालती है और अपने मिट जाने को ही अपना इष्ट बना लेती है। प्रेम अधिकार कराना चाहता है, जो कुछ देता है, उसके बदले में कुछ चाहता भी है। श्रद्धा का चरम आनंद अपना समर्पण है, जिसमें अहम्मन्यता का ध्वंस हो जाता है।