Prashant Pokhriyal

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‘बस यही कि जो मन में हो, वही मुख पर हो! मेरे लिए रंग-रूप और हाव-भाव और नाज़ो-अंदाज़ का मूल्य इतना ही है; जितना होना चाहिए। मैं वह भोजन चाहता हूँ, जिससे आत्मा की तृप्ति हो। उत्तेजक और शोषक पदार्थो की मुझे ज़रूरत नहीं।’
गोदान [Godan]
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