Sagar Verma

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मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्या बनाता हूँ हाला भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला; उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ; अपने ही में हूँ मैं साक़ी, पीनेवाला, मधुशाला |
मधुशाला
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