Sagar Verma

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यज्ञ-अग्नि-सी धधक रही है मधु की भट्ठी की ज्वाला, ऋषि-सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वाला, मुनि-कन्याओं-सी मधुघट ले फिरतीं साक़ीबालाएँ, किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला
मधुशाला
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