Sagar Verma

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बार-बार मैंने आगे बढ़, आज नहीं माँगी हाला, समझ न लेना इससे मुझको साधारण पीने वाला, हो तो लेने दो ऐ साक़ी, दूर प्रथम संकोचों को; मेरे ही स्वर से फिर सारी गूँज उठेगी मधुशाला
मधुशाला
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