Sagar Verma

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कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला, वैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला, एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले, देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला
मधुशाला
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