Shashank

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सुमुखी, तुम्हारा सुन्दर मुख ही मुझको कंचन का प्याला, छलक रही है जिसमें माणिक- रूप – मधुर – मादक – हाला, मैं ही साक़ी बनता, मैं ही पीनेवाला बनता हूँ, जहाँ कहीं मिल बैठे हम-तुम वहीं हो गई मधुशाला
मधुशाला
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