A R Kushwaha

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उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला, बड़ी पुरानी, बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला; जीवन की संताप शोक सब इसको पीकर मिट जाते; सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला
मधुशाला
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