A R Kushwaha

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एक समय छलका करती थी मेरे अधरों पर हाला, एक समय झूमा करता था मेरे हाथों पर प्याला, एक समय पीनेवाले, साक़ी, आलिंगन करते थे; आज बनी हूँ निर्जन मरघट, एक समय थी मधुशाला
मधुशाला
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