A R Kushwaha

71%
Flag icon
कभी निराशा का तम धिरता, छिप जाता मधु का प्याला, छिप जाती मदिरा की आभा, छिप जाती साक़ीबाला, कभी उजाला आशा करके प्याला फिर चमका जाती, आँखमिचौनी खेल रही है मुझसे मेरी मधुशाला
A R Kushwaha
Description of present situation...
मधुशाला
Rate this book
Clear rating