Krishna Pratap

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कहाँ पड़े हैं, किधर जा रहे है इसकी परवाह नहीं, यही मनाते हैं, इनकी आबाद रहे यह मधुशाला। भर-भर कर देता जा, साक़ी मैं कर दूँगा दीवाला, अजब शराबी से तेरा भी आज पड़ा आकर पाला, लाख पिएँ, दो लाख पिएँ, पर कभी नहीं थकनेवाला, अगर पिलाने का दम है तो जारी रख यह मधुशाला।
मधुशाला
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