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कभी न कण भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ।”
लाख पिएँ दो लाख पिएँ पर कभी नहीं थकनेवाला; अगर पिलाने का दम है तो जारी रख यह मधुशाला।
भूल गया तस्बीह नमाजी, पंडित भूल गया माला, चला दौर जब पैमानों का, मग्न हुआ पीनेवाला।
कहाँ पड़े हैं, किधर जा रहे है इसकी परवाह नहीं, यही मनाते हैं, इनकी आबाद रहे यह मधुशाला। भर-भर कर देता जा, साक़ी मैं कर दूँगा दीवाला, अजब शराबी से तेरा भी आज पड़ा आकर पाला, लाख पिएँ, दो लाख पिएँ, पर कभी नहीं थकनेवाला, अगर पिलाने का दम है तो जारी रख यह मधुशाला।
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला, ‘किस पथ से जाऊँ’ असमंजस में है वह भोलाभाला; अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ… ‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला | 6
धर्म-ग्रंथ सब जला चुकी है जिसके अन्तर की ज्वाला, मंदिर, मस्जिद, गिरजे—सबको तोड़ चुका जो मतवाला, पंडित, मोमिन, पादरियों के फंदों को जो काट चुका कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला |
बने पुजारी प्रेमी साक़ी, गंगाजल पावन हाला, रहे फेरता अविरल गति से मधु के प्यालों की माला, ‘और लिये जा, और पिए जा’— इसी मंत्र का जाप करे, मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूँ | मंदिर हो यह मधुशाला |
बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला, पी लेने पर तो उसके मुँह पर पड़ जाएगा ताला;
एक बरस में एक बार ही जलती होली की ज्वाला, एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला; दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो, दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मानती मधुशाला | 26
सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला, सजधजकर, पर, साक़ी आता, बन ठनकर, पीनेवाला, शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से चिर-विधवा है मस्जिद तेरी, सदा-सुहागिन मधुशाला !
मुसल्मान औ’ हिन्दू हैं दो, एक, मगर, उनका प्याला, एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला; दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद-मन्दिर में जाते; वैर बढ़ाते मस्जिद-मन्दिर मेल कराती मधुशाला ’ 50
कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला, वैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला, एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले, देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला ! 51
आज करे परहेज़ जगत, पर कल पीनी होगी हाला, आज करे इन्कार जरात पर कल पीना होगा प्याला; होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, फिर जहाँ अभी हैं मन्दिर-मस्जिद वहाँ बनेगी मधुशाला
आज मिला अवसर तब फिर क्यों मैं न छकूँ जी भर हाला, आज मिला मौका, तब फिर क्यों ढाल न लूँ जी भर प्याला, छेड़छाड़ अपने साक़ी से आज न क्यों जी भर कर लूँ, एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला