Koustubh

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पौधे आज बने हैं साक़ी ले-ले फूलों का प्याला, भरी हुई है जिनके अन्दर परिमल-मधु-सुरभित हाला, माँग-माँगकर भ्रमरों के दल रस की मदिरा पीते हैं झूम-झपक मद- झंपित होते, उपवन क्या है मधुशाला ! 33
मधुशाला
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