मधुशाला
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Read between January 25 - March 2, 2021
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अधरों की
45%
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नहीं जानता कौन, मनुज आया बनकर पीनेवाला, कौन अपरिचित उस साक़ी से, जिसने दूध पिला पाला; जीवन पाकर मानव पीकर मस्त रहे, इस कारण ही जग में आकर सबसे पहले पाई उसने मधुशाला |
47%
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अधरों पर हो कोई भी रस जिह्वा पर लगती हाला, भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला, हर सूरत साक़ी की सूरत में परिवर्तित हो जाती, आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला
53%
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दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला, ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला, कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को
53%
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शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला
53%
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सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला, सजधजकर, पर, साक़ी आता, बन ठनकर, पीनेवाला, शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से चिर-विधवा है मस्जिद तेरी, सदा-सुहागिन मधुशाला
54%
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मुसल्मान औ’ हिन्दू हैं दो, एक, मगर, उनका प्याला, एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला; दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद-मन्दिर में जाते; वैर बढ़ाते मस्जिद-मन्दिर मेल कराती मधुशाला
57%
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युग-युग से है पुजती आई नई नहीं है मधुशाला
57%
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कभी नहीं सुन पड़ता, ‘इसने, हा, छू दी मेरी हाला’, कभी न कोई कहता, ‘उसने जूठा कर डाला प्याला’; सभी जाति के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं; सौ सुधारकों का करती है काम अकेली मधुशाला
60%
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सुमुखी, तुम्हारा सुन्दर मुख ही मुझको कंचन का प्याला, छलक रही है जिसमें माणिक- रूप – मधुर – मादक – हाला, मैं ही साक़ी बनता, मैं ही पीनेवाला बनता हूँ, जहाँ कहीं मिल बैठे हम-तुम वहीं हो गई मधुशाला
61%
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खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे मिलने का आनंद न देती मिलकर के भी मधुशाला
64%
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प्याले-सा गढ़ हमें किसी ने भर दी जीवन की हाला, नशा न भाया, ढाला हमने ले-लेकर मधु का प्याला; जब जीवन का दर्द उभरता उसे दबाते प्याले से; जगती के पहले साक़ी से, जूझ रही है मधुशाला |
65%
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इन अधरों से दो बातें प्रेम भरी करती हाला, यदि इन खाली हाथों का जी पल भर बहलाता प्याला, हानि बता, जग, तेरी क्या है, व्यर्थ मुझे बदनाम न कर; मेरे टूटे दिल का है बस एक खिलौना मधुशाला
70%
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पाप अगर पीना, समदोषी तो तीनों—साक़ी बाला, नित्य पिलानेवाला प्याला, पी जानेवाली हाला; साथ इन्हें भी ले चल मेरे न्याय यही बतलाता है, क़ैद जहाँ मैं हूँ, की जाए क़ैद वहीं पर मधुशाला
83%
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वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अन्तर की ज्वाला, जिसमें मैं बिंबित-प्रतिबिंबित प्रतिपल, वह मेरा प्याला, मधुशाला वह नहीं, जहाँ पर मदिरा बेची जाती है, भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला