Vinay Agarwal

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बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला, बैठा अपने भवन मुअज़्ज़िन देकर मस्जिद में ताला, लुटे ख़ज़ाने नरपतियों के गिरीं गढ़ों की दीवारें; रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला
मधुशाला
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